Thursday, November 15, 2018

الحكومة الأمريكية تفرض عقوبات على 17 سعوديا‭ ‬لدورهم في مقتل جمال خاشقجي

وترى الحكومة التركية أن حراس القرى لعبوا دورا كبيرا في صد هجمات مقاتلي حزب العمال الكردستاني والحد من عمليات التصفية التي كان يقوم بها الحزب ضد من يشك بأنهم موالون للحكومة التركية.
كما أن لهم دور أمني فاعل من حيث تقديم معلومات استخبارية عن تحركات المقاتلين الأكراد والإبلاغ عن المتعاطفين معهم في
أعلنت وزارة الخزانة الأمريكية فرض عقوبات على 17 سعوديا‭ ‬لدورهم في مقتل الصحفي جمال خاشقجي في القنصلية السعودية في اسطنبول بتركيا في أول رد فعل ملموس من إدارة الرئيس الأمريكي دونالد ترامب على موت خاشقجي الشهر الماضي.
وتشمل قائمة العقوبات سعود القحطاني المستشار السابق لولي العهد السعودي الأمير محمد بن سلمان والقنصل العام السعودي في اسطنبول محمد العتيبي.
وسيتم تطبيق العقوبات بموجب قانون "غلوبال ماغنيتسكي" الذي يفرض عقوبات على من يرتكبون انتهاكات لحقوق الإنسان ويمارسون الفساد. ويمثل الإعلان تحركا غير معتاد من واشنطن التي نادرا ما تفرض عقوبات على الرياض.
ووجهت النيابة العامة السعودية تهما إلى 11 من بين 21 شخصا أوقفوا في قضية مقتل الصحفي جمال خاشقجي في مقر قنصلية الرياض في إسطنبول، بحسب بيان للنائب العام نشرته وكالة الأنباء السعودية الرسمية.
وأوضح البيان أن دعوى جزائية أقيمت بحق المتهمين "مع المطالبة بقتل" من أمر وشارك في تنفيذ الجريمة منهم وعددهم 5 أشخاص و"إيقاع العقوبات الشرعية" على البقية.
وفي أول رد فعل من أنقرة، قالت تركيا إنها غير راضية عن بعض تصرحات النيابة العامة السعودية.
وفي واشنطن، أعلنت وزارة الخزانة الأمريكية عقوبات اقتصادية على 17 مسؤولا سعوديا تقول إنهم "قتلوا بوحشية وعن عمد" خاشقجي الذي كان يعيش ويعمل في الولايات المتحدة الأمريكية "ليواجهوا عواقب أفعالهم".
وتشمل قائمة العقوبات الأمريكية سعود القحطاني، المستشار السابق لولي العهد السعودي، الذي تقول وزارة الخزانة إنه كان مشاركا "في تخطيط وتنفيذ العملية" التي قادت الى مقتل خاشقجي، وماهر مطرب الذي تقول إنه "نسق ونفذ" العملية، ومحمد العتيبي، القنصل السعودي العام في اسطنبول.
وقال وزير الخارجية الأمريكي، مايك بومبيو، إن العقوبات تعد "خطوة مهمة في الرد على مقتل خاشقجي" وتعهد بمواصلة "البحث عن كل الحقائق المتعلقة بالقضية والتشاور مع الكونغرس والعمل مع الدول الأخرى لمحاسبة الضالعين" في العملية.
وقد كشفت النيابة العامة، الخميس، عن نتائج التحقيقات بشأن مقتل خاشقجي، وقال وكيل النيابة العامة شلعان الشلعان، في مؤتمر صحفي، إن الجناة، وبعد وفاة خاشقجي، عمدوا إلى تقطيع جثته.
وأوضحت النيابة أنه تم تشكيل فريق لإعادة خاشقجي إلى السعودية بأمر من نائب رئيس الاستخبارات. وأن مستشاراً سابقاً ساهم في الإعداد لعملية الاستعادة.
وأكدت أن قائد المهمة قرر قتله في حال فشله بإقناعه.
وأشارت إلى أنه تم التوصل إلى أسلوب الجريمة وهو شجار أعقبه حقن خاشقجي بجرعة مخدرة كبيرة أدت إلى وفاته، وأن جثته قطعت بعد قتله ونقلت إلى خارج القنصلية.
وأشارت النيابة إلى أن المتهمين قدموا تقريرا كاذبا لنائب رئيس الاستخبارات السابق، وأن شخصاً واحدا منهم سلم جثة خاشقجي بعد تقطيعها إلى متعاون محلي، كما أسهم 5 متهمين بإخراج أجزاء الجثة من القنصلية، وقام أحد الأشخاص بتعطيل الكاميرات الأمنية.
وأوضحت أنه قد رسمت صورة تقريبية للمتعاون المحلي التركي وسيتم تسليمها للجانب التركي.
وذكرت النيابة أن سعود القحطاني المستشار السابق في الديوان الملكي السعودي قد منع من السفر وهو قيد التحقيق بشأن دوره في هذه القضية.
وأوضح الشلعان أن القحطاني التقى الفريق الذي كلف بمهمة إعادة خاشقجي قبل زيارتهم إلى اسطنبول وقدم لهم إيجازا بشأن نشاطات صحفية.
وشددت النيابة على أنها تنتظر الرد التركي على طلبها لتسليم الأدلة والتسجيلات الصوتية المتعلقة بالجريمة.
وقال تشاووش أوغلو ، وزير الخارجية التركي، تعليقا على تصريحات النيابة العامة السعودية "لا أجد بعض هذه التصريحات مُرضّ . يقولون إن هذا الشخص قد قتل لأنه قاوم، بينما الجريمة كانت مخططا لها مسبقا".
وأضاف "ومرة أخرى، يقولون إنه قد قطعت أوصاله... ولكن ذلك ليس عملا تلقائيا. فالأشخاص والمعدات الضرورية كانت جُلبت مسبقا لقتله وتقطيعه لاحقا".
المناطق الكردية وبالتالي حرمان الحزب من توطيد وجوده في البيئة الكردية

Friday, October 5, 2018

म्यांमार भेजे गए 7 रोहिंग्या शरणार्थियों का जीवन कितना सुरक्षित?

भारत ने जिन सात रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार के हवाले किया है, वो वहां कितने सुरक्षित होंगे?
भारत में रोहिंग्या कार्यकर्ताओं, कुछ स्थानीय मुस्लिम संगठनों और संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) ने उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है.
रोहिंग्या कार्यकर्ता अली जौहर ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "वहां जाकर उनकी क्या हालत होगी, किसी को मालूम नहीं. उनके ऊपर क्या बीतेगी, ये कोई नहीं बता सकता है. उनके जीवन पर ख़तरा है. वहां जो लोग (पहले से) हैं वो बाहर जाने के बारे में सोच रहे हैं."
यूएनएचसीआर ने एक वक्तव्य में कहा कि देशों को ऐसा कोई क़दम नहीं उठाना चाहिए जिससे किसी व्यक्ति को वापस भेजने पर उसके जीवन और उसकी आज़ादी के लिए ख़तरा पैदा हो जाए.
भारत-म्यांमार सीमा पर मोरे (मणिपुर) नाम की जगह पर उन्हें अधिकारियों को सौंपा गया.
उन्हें साल 2012 में भारत घुसने के आरोप में फ़ॉरेनर्स ऐक्ट क़ानून के अंतर्गत गिरफ़्तार किया गया था.
असम सरकार की गृह और राजनीतिक विभाग में प्रधान सचिव एलएस चांगसान के मुताबिक म्यांमार सरकार ने उनकी पहचान की पुष्टि कर दी है.
उनके नाम हैं मोहम्मद इनस, मोहम्मद साबिर अहमद, मोहम्मद जमाल, मोहम्मद सलाम, मोहम्मद मुकबुल खान, मोहम्मद रोहिमुद्दीन और मोहम्मद जमाल हुसैन.
एलएस चांगसान के मुताबिक म्यांमार के नागरिकों को निर्वासित या डिपोर्ट किए जाने की ये दूसरी घटना थी और दो महीने पहले भी म्यांमार अधिकारियों ने दो नागरिकों को स्वीकार किया था, हालांकि म्यांमार की ओर से इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस क़दम पर किसी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था.
जहां मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस कदम की तीखी आलोचना की है, वहीं स्थानीय प्रशासन के मुताबिक ये लोग अपनी मर्ज़ी से वापस जा रहे हैं.
असम सरकार की गृह और राजनीतिक विभाग में प्रिंसिपल सेक्रेटरी एलएस चांगसान ने कहा, "ये सभी म्यांमार जाने के इच्छुक थे और उन्होंने इस बारे में एक संयुक्त याचिका भी दाख़िल की थी, लेकिन राष्ट्रीयता की पुष्टि की प्रक्रिया में लंबा वक़्त लगता है... आख़िरकार ये सभी वापस (म्यामार) जाकर खुश हैं... जो लोग ये कह रहे हैं कि वे खुश नहीं हैं वे ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ये सच्चाई नहीं है."
इस सवाल पर कि क्या भारतीय सरकार इस बात की जानकारी हासिल करने की कोशिश करती है कि म्यांमार भेजे जाने वाले लोग कितने सुरक्षित होंगे, इस पर चांगसान ने कहा, "नहीं. जिन लोगों को हम (म्यांमार सरकार को) सौंपते हैं, हम उनकी खोज ख़बर नहीं रखते. वो उस देश के नागरिक हैं. हम उन पर निगरानी नहीं रख सकते."
साउथ एशिया ह्यूमन राइट्स सेंटर से जुड़े रवि नायर ने इन दावों को ग़लत बताया है.
उन्होंने कहा, "अगर ये लोग ख़ुद जाना चाहते थे तो यूएनएचसीआर (संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था) के सामने उनका बयान लिखवाते. आपने उन्हें किसी वकील के सामने पेश नहीं किया. कोई वकील उनका केस नहीं लड़ पाया. आप कहते हैं कि ये लोग अपनी इच्छा से जाने के लिए तैयार थे. इसका प्रमाण क्या है आपके पास? आपकी लफ़्फ़ाज़ी इसके अलावा क्या है?"
एक आंकड़े के मुताबिक भारत में करीब 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं.
कुछ वक्त पहले भारत सरकार की ओर से एक एडवाइज़री जारी की गई थी कि हर राज्य में रोहिंग्या लोगों की पहचान की जाए, उनकी संख्या को जुटाया जाए, उनके बायोमेट्रिक्स लिए जाएं, साथ ही ये भी पुष्टि की जाए कि उनके पास ऐसा कोई दस्तावेज़ न हो ताकि भविष्य में वो नागरिकता के लिए दावा कर सकें.
अली जौहर ने पुष्टि की थी कि बायोमेट्रिक्स की प्रक्रिया जारी है.
भारत में कई संगठन रोहिंग्या मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते रहे हैं. वि नायर के मुताबिक इस क़दम से भारत ने कई अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों जैसे सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स कन्वेंशन, इकोनॉमिक एंड सोशल राइट्स कन्वेंशन और वीमेंस कन्वेंशन का उल्लंघन किया है जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं.
कुछ समय पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बयान में कहा था, "ये रोहिंग्या शरणार्थी नहीं हैं, ये हमें समझना चाहिए. रेफ़्यूजी स्टेटस प्राप्त करने का एक तरीका होता है और इनमें से किसी ने इस तरीके को नहीं अपनाया है. उन्हें वापस भेजकर भारत किसी अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि उसने 1951 संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं."
उन्होंने कहा,"ये म्यांमार के नागरिक हैं. उनकी पहचान की म्यांमार सरकार ने पुष्टि कर दी है... उन्हें साल 2012 में गिरफ़्तार किया गया था जब वो असम में घुस रहे थे... फिर म्यांमार दूतावास से संपर्क किया गया और म्यांमार सरकार ने पुष्टि करने के बाद उन्हें ट्रैवल परमिट दे दिया."
एक आंकड़े के अनुसार अगस्त 2017 से क़रीब सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने सीमा पार करके पड़ोसी बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों में शरण ली है.
म्यांमार में उत्तरी रखाइन प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों का कहना है कि म्यांमार की सेना उन्हें मार रही है और उनके घरों को तबाह कर रही है.
म्यांमार की सेना के मुताबिक वो आम लोगों को नहीं रोहिंग्या चरमपंथियों को निशाना बना रही है.
संयुक्त राष्ट्र ने रखाइन में म्यांमार सेना की कार्रवाई को "नस्ली संहार का साफ़ उदाहरण" बताया है.
एलएस चांगसान के मुताबिक स्थानीय डिटेंशन सेंटर्स में 32 रोहिंग्या थे और सात लोगों के वापस म्यांमार जाने के बाद 25 लोग भारतीय डिटेंशन सेंटर्स में बचे हैं.
साउथ एशिया ह्यूमन राइट्स सेंटर से जुड़े रवि नायर भारतीय सरकार पर आरोप लगाते हैं कि इस साल रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के दौरान सभी प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई.
वो कहते हैं, "अभी तक सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स के आदेशों के अनुसार उनको यूएनएचसीआर के सामने पेश करना होता है, ये पता लगाने के लिए कि क्या ये शरणार्थी हैं या और कुछ हैं. अगर यूएनएचसीआर उन्हें शरणार्थी कार्ड देती है, उसके आधार पर गृह मंत्रालय का एफ़आरआरओ विभाग उन्हें लंबे समय का वीज़ा देता है. इस मामले में ऐसा हुआ ही नहीं. उन्हें दिल्ली से सिल्चर नहीं लाया गया. किसी को जानकारी ही नहीं थी कि ये सिल्चर में गिरफ्तार हैं."
"अफ़सोस की बात ये है कि इन लोगों को गांव नहीं जाने दिया जा रहा. वहां पर ये लोग फिर जेल में रहेंगे. ये लोग एक जेल से दूसरे जेल में जा रहे हैं... क्या ये किसी लोकतांत्रिक देश का व्यवहार है?"

Monday, September 24, 2018

वैश्वीकरण को अलविदा कहने का वक्त

विश्व अर्थव्यवस्था का रूप बदल रहा है। विकसित देशों की प्रमुख अर्थव्यवस्था अमेरिका ने वैश्वीकरण से पीछे हटने के कदम उठाये हैं। हाल ही में अमेरिका ने भारत और चीन से आयातित स्टील पर आयात कर बढ़ा दिये थे, जिससे कि अमेरिकी स्टील निर्माताओं को इनसे प्रतिस्पर्धा करने में आसानी हो जाये। इस परिस्थिति में हमें तय करना है कि हम ग्लोबलाइजेशन को पकड़े रहेंगे अथवा हम भी अमेरिका की तरह इससे पीछे हटेंगे।
विषय को समझने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जाना होगा। वैश्वीकरण के दो प्रमुख बिन्दु हैं। एक बिन्दु माल के व्यापार का है। विश्व व्यापार संघ (डब्ल्यूटीओ) के अंतर्गत प्रमुख सभी सदस्य देशों ने आयातों पर उनके द्वारा आरोपित की जाने वाली आयात कर की अधिकतम सीमा तय कर ली थी। विचार था कि आयात कर न्यून होने से विश्व के सभी देशों में व्यापार बढ़ेगा और सम्पूर्ण विश्व को सस्ते माल उपलब्ध हो जायेंगे। जैसे यदि भारत में कपड़े सस्ते बनते हैं तो वे अमेरिकी उपभोक्ता को सस्ते उपलब्ध हो जायेंगे और यदि अमेरिका में सेब सस्ते उत्पादित होते हैं तो वे भारत के उपभोक्ता को सस्ते दाम में उपलब्ध हो जायेंगे।
वैश्वीकरण का दूसरा बिन्दु नई तकनीकों पर पेटेन्ट कानून का था। डब्ल्यूटीओ के वजूद में आने के पहले कोई भी देश किसी दूसरे देश में आविष्कार की गई तकनीक की नकल करके अपने देश में उसका उपयोग कर सकता था। जैसे यदि माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिका में विन्डोज़ सॉफ्टवेयर का आविष्कार किया तो भारतीय सॉफ्टवेयर कम्पनियां उसी प्रकार के सॉफ्टवेयर का निर्माण करके देश में बेच सकती थीं। डब्ल्यूटीओ के अन्तर्गत व्यवस्था दी गई कि सभी नई तकनीकों पर 20 साल तक पेटेंट रहेगा। यानी विन्डोज़ सॉफ्टवेयर के आविष्कार के बाद बीस वर्षों तक उसकी नकल कोई दूसरा देश नहीं कर सकता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत जिन-जिन देशों के द्वारा नई तकनीकों का ज्यादा आविष्कार हो रहा था, उन्हें अपने माल को पूरे विश्व में ऊंचे दाम पर बेचने का अवसर मिल गया। जैसे माइक्रोसॉफ्ट के लिए सम्भव हो गया कि वह विन्डोज़ सॉफ्टवेयर को पूरे विश्व में ऊंचे दाम पर बेचे क्योंकि किसी भी देश को इस तकनीक की नकल करने की छूट नहीं थी।
डब्ल्यूटीओ के बनाने से आशा की गई थी कि विकसित देशों को पेटेंट से आय अधिक होगी। मुक्त व्यापार से विकासशील देशों में बना सस्ता माल भी उपलब्ध हो जायेगा। भारत जैसे देशों को आशा थी कि अमेरिका के बाजार उनके माल के लिए खुल जायेंगे और उन्हें अपना माल निर्यात करने का अवसर मिलेगा, जिससे भारत में आय बढ़ेगी। चीन ने इस व्यवस्था का भरपूर लाभ उठाया है और आज सम्पूर्ण विश्व में चीन का माल छा गया है क्योंकि डब्ल्यूटीओ के अन्तर्गत सभी देशों को चीन के माल पर आयात कर बढ़ाने का अधिकार नहीं है। लेकिन विकासशील देशों ने आकलन किया कि पेटेंट से हुए नुकसान की तुलना में व्यापार से और निर्यातों से उन्हें लाभ ज्यादा होगा। इसलिये उन्होंने भी डब्ल्यूटीओ का समर्थन किया था।
बीते दशक में परिस्थिति में मौलिक अन्तर आया है। आज विकसित देशों में नयी तकनीकों का आविष्कार कम हो रहा है। जैसे कई वर्षों से माइक्रोसॉफ्ट द्वारा नये विन्डोज़ प्रोग्राम का आविष्कार नहीं हो सका है। इस परिस्थिति में वैश्वीकरण अमेरिका के लिए हानिप्रद हो गया है। पेटेन्ट कानून से उनकी आय कम हो गई है। जबकि मैन्यूफैक्चरिंग के बाहर जाने से वहां पर रोजगार के अवसर कम हो गये हैं। इसलिये आज अमेरिका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है। इसलिये अमेरिका ने मुक्त व्यापार से पीछे हटने का निर्णय लिया है। ध्यान देने की बात यह है कि हमारे लिए मुक्त व्यापार अभी भी लाभप्रद है। नई तकनीकों के आविष्कार कम होने से पेटेन्ट के कारण होने वाला नुकसान हमें कम हुआ है। जबकि मुक्त व्यापार बने रहने से हमारे निर्यात बने रहेंगे। इसका हमें लाभ मिलेगा। अतः वैश्वीकरण विकसित देशों के लिए हानिप्रद और विकासशील देशों के लिए लाभप्रद हो गया है। इसलिये आज अमेरिका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है जबकि भारत वैश्वीकरण की वकालत कर रहा है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी वर्ष के प्रारम्भ में दाबोस में द वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की दाबोस मीटिंग में वैश्वीकरण को बनाये रखने पर जोर दिया था जो कि सही सोच है।
यह स्पष्ट है कि यदि सभी देश वैश्वीकरण को अपनायें तो आज भारत के लिए वैश्वीकरण लाभप्रद है। प्रश्न यह है कि यदि अमेरिका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है तो क्या हमें भी वैश्वीकरण से पीछे हटना चाहिए अथवा वैश्वीकरण को पकड़े रहना चाहिए? यदि अमेरिका के वैश्वीकरण से पीछे हटने के बावजूद हम वैश्वीकरण को पकड़े रहते हैं तो हमें दोहरा नुकसान होगा। वैश्वीकरण को पकड़े रहने से हमारे पेटेन्ट कानूनों के कारण आय बाहर जाती रहेगी जैसे हम विन्डो सॉफ्टवेयर की नकल नहीं कर सकेंगे और हमारे निर्यात भी नहीं बढ़ेंगे क्योंकि अमेरिका द्वारा हमारे निर्यातों पर आयात कर बढ़ा दिये गये हैं जैसे स्टील पर। इसके विपरीत हमारे देश में आयात बढ़ते जायेंगे चूंकि वैश्वीकरण को अपनाकर हम आयात करों को न्यून बनाये रखेंगे। आज अपने देश में चीन का माल भारी मात्रा में आ रहा है क्योंकि हमने वैश्वीकरण को पकड़ रखा है।
इसके विपरीत यदि हम अमेरिका की तरह संरक्षणवाद को अपनायें तो हमें लाभ ज्यादा होगा। संरक्षणवाद को अपनाने से पेटेंट कानून को हम निरस्त कर सकते हैं और विन्डोज़ सॉफ्टवेयर की नकल कर सकते हैं, जिससे हमें लाभ होगा। साथ-साथ संरक्षणवाद को अपनाने से अमेरिका और चीन से आयात हो रहे माल पर हम आयात कर बढ़ा सकेंगे और हम अपने उद्योगों की रक्षा कर सकेंगे।
मूल रूप से वैश्वीकरण आज हमारे लिए लाभप्रद है। लेकिन यह तब ही लाभप्रद है जब दूसरे देश भी इसको अपनायें। यदि सभी देश वैश्वीकरण को अपनाते हैं तो आज नई तकनीकों का आविष्कार कम होने से हमें पेटेन्ट से नुकसान कम होगा जबकि विश्व व्यापार में अपने माल के निर्यात करने की सुविधा मिलने से निर्यातों से लाभ ज्यादा होगा। लेकिन यदि प्रमुख देश वैश्वीकरण को नहीं अपनाते हैं और हम उसको पकड़े रहते हैं तो यह हमारे लिये घाटे का सौदा हो जायेगा क्योंकि उनके द्वारा उत्पादित माल अपने देश में प्रवेश करेगा जबकि हमारा माल उनके देश में निर्यात नहीं हो सकेगा।
भरत झुनझुनवाला
अमेरिका द्वारा भारत और चीन से आयातित स्टील पर आयात कर बढ़ाने के प्रतिरोध में चीन ने अमेरिका से आयातित कुछ माल पर आयात कर बढ़ा दिये थे। हमने ऐसी कोई प्रतिक्रिया फिलहाल नहीं दर्शायी है। हमें भी अमेरिका से आयातित माल पर ही नहीं बल्कि चीन से भी आयातित माल पर आयात कर बढ़ाना चाहिये। अन्यथा हमारे उद्योग वैश्वीकरण से दोहरे नुकसान की चपेटे में आयेंगे। बाहर का सस्ता माल अपने देश में आयेगा और हमारा माल बाहर नहीं जा सकेगा और हमारे लिये वैश्वीकरण घाटे का सौदा हो जायेगा।

Tuesday, August 28, 2018

छत्तीसगढ़ की 'हादिया' ने पति नहीं, मां-बाप को चुना

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के चर्चित मोहम्मद इब्राहिम सिद्दीक़ी उर्फ़ आर्यन आर्य मामले में इब्राहिम की पत्नी अंजलि जैन को उनकी इच्छा के अनुरुप माता-पिता के साथ रहने का फ़ैसला सुनाया है.
इब्राहिम सिद्दीक़ी का कहना है कि उन्होंने अंजलि से शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन करके हिंदू धर्म अपनाया था और उसके बाद अपना नाम आर्यन आर्य रखा था.
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ने अंजलि जैन से उनके विवाह के बारे में पूछताछ की और उनकी इच्छा के अनुरूप उन्हें माता-पिता के साथ रहने की इजाज़त दी.
केरल के 'हादिया' केस की तरह कहे जा रहे इस मामले में इब्राहिम सिद्दीक़ी उर्फ आर्यन आर्य ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.
उनका कहना था कि उनकी बालिग पत्नी अंजलि जैन की इच्छा के बाद भी हाईकोर्ट ने उन्हें छात्रावास या माता-पिता के साथ रहने का फ़ैसला सुनाया है, जो न्यायसम्मत नहीं है.
इस मामले की सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने 27 अगस्त को अंजलि जैन को अदालत में प्रस्तुत करने के निर्देश छत्तीसगढ़ पुलिस को जारी किये थे.
सोमवार को अदालत की सुनवाई के बाद इब्राहिम सिद्दीक़ी उर्फ आर्यन आर्य के वकील ने कहा, "अदालत ने उनके परिजनों को कोर्ट रुम से बाहर भेजकर उनसे पूछा कि वे पति के साथ रहना चाहती हैं या अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती हैं. जिस पर अंजलि जैन ने अपने माता-पिता के साथ रहने की इच्छा जताई."
इधर मोहम्मद इब्राहिम सिद्दीक़ी ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उन्हें इस फ़ैसले की उम्मीद नहीं थी.
उन्होंने कहा, "मैंने अपनी पत्नी अंजलि के कहने पर ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन अंजलि ने किन कारणों से अपने माता-पिता के साथ जाने का फ़ैसला किया, मेरे लिये यह समझ पाना मुश्किल है."
छत्तीसगढ़ के धमतरी के रहने वाले 33 वर्षीय मोहम्मद इब्राहिम सिद्दीक़ी और 23 वर्षीय अंजलि जैन ने दो साल की जान-पहचान के बाद 25 फरवरी 2018 को रायपुर के आर्य मंदिर में शादी की थी. इब्राहिम का दावा है कि उन्होंने शादी से पहले हिंदू धर्म अपना लिया था. इसके बाद उन्होंने अपना नाम आर्यन आर्य रखा था.
मोहम्मद इब्राहिम सिद्दकी उर्फ आर्यन आर्य के अनुसार, "शादी की ख़बर जैसे ही मेरी पत्नी अंजलि के परिजनों को मिली, उन्होंने मेरी पत्नी को घर में क़ैद कर लिया. मैंने बहुत कोशिश की कि किसी भी तरह अंजलि से मेरी मुलाकात हो लेकिन यह संभव नहीं हो पाया."
इसके बाद इब्राहिम ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करते हुये न्यायालय से अपनी पत्नी अंजलि जैन को वापस किये जाने की गुहार लगाई.
लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अंजलि जैन को सोच-विचार के लिये समय देते हुये छात्रावास में या माता-पिता के साथ रहने का आदेश पारित करते हुये मामले को ख़ारिज कर दिया. अंजलि जैन ने माता-पिता के बजाय छात्रावास में रहना तय किया था.
इसके बाद इब्राहिम ने हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

Friday, August 17, 2018

中国核电会继续特立独行吗?

在一场席卷中国南方的寒潮中,东南沿海小镇福清的核电站依然在紧锣密鼓地赶工——1月11日,高达70米的中核集团“华龙一号”五号反应堆顺利完成封顶。

不过,在世界范围内,核电行业依然处于一个只能用凋敝来形容的冬天之中。

在一次能源消费高度依赖核能的法国,电力巨头EDF宣布将投资250亿欧元(约310亿美元)建设光伏发电厂,此举被认为是这一老牌核电大国逐渐向可再生能源转型的信号;在核能装机大国韩国,文在寅政府在能源政策上“大转向”,承诺新政府将终止所有建设新核电站的计划,也不再批准现有核电站延期运行;而在核反应堆最多、核能发电量最多的美国加州日前也以全票通过的方式通过决定,在2024年将对加州境内的最后一座核电站Diablo Canyon核电站开启退役程序。全球的核电增长乏力是不争的事实,新建核反应堆的速度已经比不上核电站关闭的速度。在这样的惨淡大局中,中国核电的相对强势格外扎眼:国际能源署最新发布的《世界能源展望2017》认为,全球核电发展的前景依然暗淡,不过中国会继续引领核电生产的渐进发展。《展望》甚至预测,到2030年时中国会超越美国,成为最大的核电生产国。

从数据来看,中国的确雄心勃勃。据《全球核能产业发展报告》估算,全球在建核电总装机容量中有40%在中国,而2018年中国预计将有5台新的核电机组投入商业运行。

对核电不离不弃

在世界各国纷纷对核电采取保守态度的当下,中国为何却对这一争议缠身的能源形式不离不弃、步步为营?
中海油研究总院规划研究院战略研究员许江风告诉中外对话,单纯支持一种而反对其他,对中国这种量级的电力市场来说,是不可行的。从能源结构上看,各类能源均衡发展,才能更好地保障能源安全。

从价格角度来看,根据国家能源局最新公布的2016年度全国电力价格情况,核电的上网电价仅高于燃煤机组,仍然大大低于燃气、光伏和风电。中国工程院院士叶奇蓁对于中国核电的经济性态度颇为乐观。他对《中国能源报》表示,中国目前投产的二代改进核电机组,在规模化建设之后,在东南沿海的电价与当地煤电标杆电价相当,有些机组甚至更低。

也有不少中国专家认为核电是更可靠、安全、清洁的能源形式,对于减轻中国的煤电污染至关重要。姜克隽就认为,从全生命周期的分析来说,核电是最清洁的发电方式,减碳的角度更是如此。至于核电站事故的风险,他认为,核电的危害至少远低于煤电,“就像飞机和火车的对比,飞机的死亡率远远低于火车,但飞机出一次事故却引起广泛关注。”

狭窄的现实空间:两年零审批

但是,尽管政策制定者始终坚持核电发展具有各种战略意义,在现实中,中国核电发展的增长空间却存在巨大的问号。

尽管中国目前仍拥有近2000万千瓦的在建核电装机规模,但其建设计划已经面临延迟,恐无法达到2020年5800万千瓦的目标。据界面新闻报道,2016和2017年,国家能源局已经连续两年没有批准新的核电项目。2017年,中国仅有两座此前已经在建的核电机组并网发电。

对此,国家能源局核电司副司长史立山也坦承,“过去设想的规模目标的实现存在一些变数,在建机组,该投产、能装料的现在也在等待状态”。究其原因,史立山认为,一方面,“上上下下”对于核电的认识还不统一;另外,就是市场难以消纳。

来自可再生能源的激烈竞争

“只需要算一下电力供给侧和需求侧的帐,就知道市场上已经容纳不下核电了,”东电万维科技(北京)有限公司总工程师康俊杰告诉中外对话。

他所指的是,随着中国经济增速逐渐放缓,电力需求和电力消费增速也明显下降,2015年甚至出现了五十多年以来首次发电量下降。

而这狭窄的增长空间,面临着核电、光伏、风电、水电的激烈争夺。从全球范围来看,太阳能和风能正逐渐取代核电成为新建电厂的首选,中国也是如此。

成本是一个重要的因素,较早建成的核电站正在纷纷进入生命周期中晚期,运行和维护成本升高,而方兴未艾的可再生能源价格还在持续降低,市场竞争的天平逐渐向可再生能源倾斜。彭博新能源财经(BNEF) 分析认为,中国的陆上风电和光伏电价将分别于2019年和2021年降到煤电之下。也就是说,核电相对于可再生能源的成本优势几年后可能就会消失。

Friday, August 10, 2018

化学回收技术能解决塑料危机吗?

全世界每年生产塑料4亿吨,但只有10%得到了回收利用。塑料每年对世界海洋生态系统造成的经济损失至少达130亿美元(890亿元人民币)。有关塑料环境影响的数据正在以惊人的速度增加,丝毫不逊于塑料垃圾增加的速度。

虽然有必要增加循环利用率,但并非所有常用的塑料都能被加工。这意味着即使所有的消费者和企业都回收了他们所能回收的所有塑料,仍然会有很大一部分变为垃圾。

大多数可回收的塑料经机械加工分解成颗粒,然后重新制造成新的塑料产品,例如包装材料,座椅或衣物(聚酯)。然而,该工艺不适用于塑料薄膜、小袋和其他层压塑料,通常这些材料会被送到垃圾填埋场或进行焚烧。

那么该如何处理这些占总量近40%的难以回收的塑料呢?办法之一就是化学回收。这种方法可以去除制造过程中添加的化学物质和其他成分,将塑料变回纯质油。

油与塑料间的循环往复

化学回收方法并不新鲜,但到目前为止无人开发出成功的商业模式,将大量小而轻的塑料垃圾(如薄膜等)运输到集中处理厂。由于原材料价格很低,所以建立必要的回收网络动力不足。

一家英国公司称其找到了解决办法。总部位于该国西南部斯温顿的“回收技术公司”表示,其生产的RT7000设备可以安装在现有的垃圾处理厂中,将难以回收的塑料材料转化为石油。该产品名为Plaxx,可以替代化石燃料中提取的油,用于生产新的聚合物和合成蜡。

该公司还称该工艺可以减少碳排放——与垃圾处理厂焚烧能耗相比,用该公司的机器处理一吨塑料将减少1.8吨二氧化碳排放。

“回收技术公司”正在斯温顿筹建装配厂,每年生产200台机器,以满足预期的塑料回收需求。该公司表示,机器可在三年内回本,并可装入集装箱,以便运输到垃圾处理厂,从源头进行塑料回收。相比于将塑料运输到大型集约化处理站,将设备运输到各个废品处理厂的卡车往返次数减少了六分之五。

该公司还在苏格兰的 回收创新中心安装了一台机器。在苏格兰政府和欧洲区域发展基金的支持下,该项目将同时采用多项最先进的回收技术,建立一个能够让家庭回收全部塑料的示范系统。

该公司将在英国和北欧安装的首批12台机器已成功获得了6500万英镑(5.8亿元人民币)的Plaxx销售合同。该公司还与专门从事石油和石化领域运输、储存和混合的全球商品贸易商——英腾化工(InterChem)建立了商业联盟。

该公司还向欧洲蜡制造商Kerax预售了价值1500万英镑(1.34亿元人民币)的蜡材料。蜡可以用于制造全天候防水界面材料、蜡烛和凡士林等化妆品,但全球供应短缺。“回收技术公司”销售和营销总监鲁珀特·霍沃思解释说,蜡通常源自炼油产生的副产品,但现代炼油厂已不再产生此类产品。

“未来几年,传统蜡的供应量将急剧下降。从可再生塑料中获取蜡是一项重大创新,完全符合我们供应来源多样化的目标,“Kerax首席执行官伊恩·阿普尔顿说。为缓解世界塑料污染问题,必须扩大这项技术的使用。“回收技术公司”的目标是到2027年在全球安装1700台机器,年塑料回收能力有望达到1000万吨。

“向我们打听这项技术的公司几乎遍及世界各个角落,因为这是一个世界性的问题,” 霍沃思称。公司计划亲自建立、拥有和运营首批设备,然后再扩大规模。 “当人们了解了这项技术并接受了它,我们就可以开始销售了,”他说。

食品和饮料制造商也有化学回收产品的需求。其中许多企业通过“废弃物与资源行动计划”(WRAP)组织领导的英国塑料协议等倡议,承诺采取行动,解决塑料包装问题。

签署该协议的企业所使用的塑料包装占英国超市所售产品塑料包装总量的80%以上,其中包括阿斯达、可口可乐、联合利华和乐购。

除了杜绝不必要的塑料包装外,这些企业还承诺100%实现塑料包装可重复使用或可回收利用,且所有塑料包装中再生成分占到30%。

目前,人们担心满足这些举措会导致材料供不应求。根据规定,欧盟范围内使用的食品和饮料包装必须通过欧洲食品安全局制定的严格安全测试,并且由于机械回收工艺通常无法去除塑料原本用途生产过程中所使用的化学品和重金属,所以大多数经机械回收的塑料都不能用于食品饮料包装。

英国塑料联合会可持续发展问题执行官海伦•乔丹说:“很多公司都承诺包装中含有一定比例的再生成分。这些成分要有供给来源,而且是能和食物接触的材料。人们对身边是否有充足的供给来源存有疑问,若是通过化学回收方式得到这些材料,将是一件好事。”

如今有计划通过艾伦·麦克阿瑟基金会的新塑料经济项目在全球范围内推广“废弃物与资源行动计划”,这将进一步扩大Plaxx等食品级包装产品的需求。

Recoup首席执行官斯图尔特·福斯特说,“回收技术公司”开发的技术和商业模式在非洲和亚洲国家极具潜力,因为这些地区是塑料进入土壤或海洋的重灾区。 “这样做会使低规格的塑料得到回收利用。因此,若在这些地区使用这种技术,就相当于遏制了全球塑料污染问题,”他说。

福斯特补充道:“在使用塑料包装益处良多,所以最好的解决方案就是,如果我们能找到合理的处理方式,就可以继续使用塑料。我们听说过无塑料产品等,但如果塑料是保持新鲜的最佳产品,那么最理想的方式就是继续使用塑料,但是要有相应的这些解决方案。”

Thursday, July 19, 2018

मोदी को खुश करने के लिए नवाज़ शरीफ़ ने मुंबई हमले की जिम्मेदारी ली: इमरान ख़ान

पाकिस्तान में अगले हफ्ते आम चुनाव होने हैं. जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है, चुनावी सरगर्मियां तेज़ होने लगी है.नेता अपनी रैलियों में बच बचकर भारत और कश्मीर के मुद्दे पर बोल रहे थे, लेकिन बुधवार को चुनावी माहौल उस वक़्त और गर्म हो गया जब इमरान खान ने जेहलम की एक रैली में खुलकर कश्मीर और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र किया.

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के नेता इमरान खान ने आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तान की सेना से डर कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शरण में गए थे.उन्होंने नवाज़ शरीफ़ पर कश्मीर के मसले को नज़रअंदाज़ करने का भी आरोप लगाया.

इमरान ख़ान ने कहा, "भारत में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, नवाज़ शरीफ़ उनसे मिलने गए और उस दौरान कश्मीर की हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के लोगों से मिलने से इनकार कर दिया."क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान ख़ान ने नवाज़ शरीफ़ और आसिफ अली जरदारी की तुलना मीर सादिग और मीर जाफीर से की.

उन्होंने कहा "इनलोगों में मीर सादिग और मीर जाफीर में कोई फर्क नहीं है. इनकी वफादारी पैसों से है."
"25 तारीख अहम दिन है. यह मुल्क की तकदीर बदलने का दिन है. यह आसिफ अली जरदारी और नवाज शरीफ से जान छुड़ाने का दिन है. इनसे जान इसलिए छुड़ानी है क्योंकि ये आपका का पैसा आपकी मुल्क से बाहर ले कर गए हैं."

इमरान ख़ान ने इन दोनों नेताओं पर देश की सेना को बदनाम करने का भी आरोप लगाया.उन्होंने कहा, "पहले जरदारी ने अपनी देश की फौज को जलील करने की कोशिश की. वो अमरीका के सैन्य प्रमुख को कहते हैं कि मुझे फौज से बचा लो, मेरी मदद करो."

"उनके बाद नवाज़ शरीफ़ जब भ्रष्टाचार के मामले में फंसने लगे तो उन्होंने पहले फौज को बदनाम किया, बाद में मुंबई हमले की जिम्मेदारी देश के ऊपर ले ली. उन्होंने कहा कि मुंबई में हमने दहशतगर्द भेजे थे."इमरान ख़ान ने विपक्षी नेताओं पर आरोप लगाया कि दोनों ने देश के बाहर के लोगों को खुश करने के लिए देश को बदनाम किया.

पाकिस्तान में अगले हफ्ते आम चुनाव होने हैं. जैसे-जैसे समय नजदीक आ रहा है, चुनावी सरगर्मियां तेज़ होने लगी है.नेता अपनी रैलियों में बच बचकर भारत और कश्मीर के मुद्दे पर बोल रहे थे, लेकिन बुधवार को चुनावी माहौल उस वक़्त और गर्म हो गया जब इमरान खान ने जेहलम की एक रैली में खुलकर कश्मीर और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र किया.

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के नेता इमरान खान ने आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तान की सेना से डर कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शरण में गए थे.उन्होंने नवाज़ शरीफ़ पर कश्मीर के मसले को नज़रअंदाज़ करने का भी आरोप लगाया.इमरान ख़ान ने कहा, "भारत में नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, नवाज़ शरीफ़ उनसे मिलने गए और उस दौरान कश्मीर की हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के लोगों से मिलने से इनकार कर दिया."
उन्होंने कहा कि यह सबकुछ करके उन्होंने अपना फ़ायदा किया और देश को कर्ज के नीचे लाकर छोड़ दिया.

Sunday, July 8, 2018

почему США обвинили Россию в попытках дестабилизации НАТО

В Соединённых Штатах вновь недовольны Россией. Москва якобы переманивает Турцию из Североатлантического альянса, стремясь «дестабилизировать сильнейший оборонный союз в истории мира». Об этом заявила американский постпред при НАТО Кэй Бэйли Хатчисон. По её словам, с этой целью российская сторона продаёт Анкаре зенитно-ракетные комплексы С-400. Между тем, подчеркнула Хатчисон, Вашингтон сделает всё, чтобы не упустить своего партнёра. Опрошенные RT эксперты отмечают, что речь не идёт о выходе Турецкой Республики из военного блока — страна просто проводит курс на отстаивание своих национальных интересов.
В Соединённых Штатах вновь недовольны Россией. Москва якобы переманивает Турцию из Североатлантического альянса, стремясь «дестабилизировать сильнейший оборонный союз в истории мира». Об этом заявила американский постпред при НАТО Кэй Бэйли Хатчисон. По её словам, с этой целью российская сторона продаёт Анкаре зенитно-ракетные комплексы С-400. Между тем, подчеркнула Хатчисон, Вашингтон сделает всё, чтобы не упустить своего партнёра. Опрошенные RT эксперты отмечают, что речь не идёт о выходе Турецкой Республики из военного блока — страна просто проводит курс на отстаивание своих национальных интересов.
Об этом заявила американский постпред при НАТО Кэй Бэйли Хатчисон. По её словам, с этой целью российская сторона продаёт Анкаре зенитно-ракетные комплексы С-400. Между тем, подчеркнула Хатчисон, Вашингтон сделает всё, чтобы не упустить своего партнёра. Опрошенные RT эксперты отмечают, что речь не идёт о выходе Турецкой Республики из военного блока — страна просто проводит курс на отстаивание своих национальных интересов.